सखी, तुम्हारी कौमार्य अवस्था के कारण इस कथा को सुनते समय मन में श्लील-अश्लील के राग उत्पन्न हो सकते हैं किंतु ये महज मनोवेग हैं और परिस्थितियों के अनुरूप बदलते रहते हैं। आज ग्यारहवीं सदी के इक्कीसवे वर्ष के मध्याह्न माह के पुष्य नक्षत्र के अमृत सिद्धी योग में सुनाई जा रही इस कथा में बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के कुछ आवश्यक उद्धरण भी सम्मिलित हैं वे मैंने अपनी दिव्य दृष्टि से जाने हैं। रति रूपणि के सहचर्य को आतुर, मोहिनी मूरतों के मोह से बंधा व्याकुल और अधीर सुरमेरू का राजा कामलोभ...
बड़ा विचित्र नाम है ?
सखी कथा के असीम आनंद को प्राप्त करने का एक आवश्यक तत्व यह भी है कि जिज्ञासा को नियंत्रण में रखा जाए और कथाकार से अनावश्यक प्रश्न ना पूछे जायें। इससे कथा की लम्बाई बढती है और रस की बूंदें विलंब से टपकती है। तो, बल से प्राप्त राज्य तदन्तर अनंत इच्छाओं की पूर्ति के लिए बल पूर्वक किए गए राज्य विस्तार के कारण उसका नाम बललोभ था किंतु कालांतर में कामक्रियाओं के अधीन हो जाने के कारण उसे कामलोभ नाम से जाना जाने लगा।
कामलोभ का मन राज कार्यों से एका एक उचट गया वह एक ऐसी व्याधि से ग्रसित हो गया जिसके सूत्र उसकी किशोरावस्था से जुङे हैं। राजपुत्र होने के कारण किसी जतन से उसे हरम तक पहुँचने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता, अल्पायु में नाना प्रकार की काम क्रीडाएं देख लेने के कारण वह कई प्रकार की भ्रांतियों और मनोविकारों से ग्रसित हो गया था। आने वाली इक्कीसवीं सदी में ये हरम इन्टरनेट जैसे एक माध्यम से हर घर में पहुँच जाएगा इसलिए ये कथा समीचीन है और इसको सुनाने से प्रयोजन भी सिद्ध होता है।
कामलोभ के रति क्रीड़ा में लिप्त रहने के कारण उसके मंत्री स्वार्थलोभ के सभी स्वार्थ सिद्ध होते थे अतः उसने राजा को सुझाव दिया कि किसी ऐसी औषध का पता लगाया जाए जो उनके सुख में श्रीवृद्धि कर सके। अपने मन की बात मंत्री के मुंह से सुन कर कामलोभ को अतिप्रसन्नता हुई और स्वार्थलोभ को पुरस्कृत करने का विचार मन में आया किंतु अपनी प्रतिष्ठा और उम्र का सोच कर मात्र सहमती का संकेत किया।
मंत्री ने तत्काल राजवैध्य, सम्मानलोभ तक दौड़ लगायी और राजा का मंतव्य बताया। यह सुनते ही सम्मानलोभ ने असमर्थता दिखाते हुए कहा मंत्री जी इस तरह का कोई औषध नहीं है जो शारीरिक रूप से समर्थ व्यक्ति को और अधिक काम बलवान बना सके हाँ कुछ उत्तेजक और मादक पदार्थ अवश्य हैं जो क्षणभंगुर सुख प्रदान करते है किंतु उनके मूल्य के रूप में राजपाट भी चुकाना पड़ सकता है इनका सेवन करने पर मनुष्य पशु सदृश्य हो जाता है।
मंत्री के अत्यधिक आग्रह पर सम्मानलोभ ने बताया कि पूरे उत्तर भारत और काठियावाड़ क्षेत्र में एक कांटेदार पूंछ वाली छिपकली पाई जाती है उससे कुछ उपाय बन सकता है। स्वार्थलोभ ने अपने आदमी अर्थलोभ को उसकी खोज में भेजा, कई महीनों तक निरंतर प्रयास के पश्चात भी वह उपयुक्त छिपकली नहीं ढूँढ पाया, इधर राजा की बेचैनी बढती जा रही थी ढलती उम्र में संयम से काम लेने के स्थान पर वह हर क्षण व्यग्र हुआ जाता, काम का दलदल उसे अपने पाश से मुक्त करने के स्थान पर अपने भीतर समेटता जाता।
अर्थलोभ के खाली हाथ लौट आने पर सम्मानलोभ ने इस बार उसे विस्तार से छिपकली के रंग रूप के बारे में बताया, उसने जो सूचनाएं दी उससे भी उन्नत जानकारी के लिए सखी मैं तुम्हें इक्कीसवीं सदी की एक ऐसी पाठशाला ले चलती हूँ जिसका विस्तार कई किलोमीटर तक फैला है इसमे कई हज़ार विद्यार्थी पढ़ते है और शोध करते है, प्राणिशास्त्र विभाग के अध्येता मनोज चौधरी ने बताया कि ये एक बालू छिपकली है। इसका वैज्ञानिक नाम युरोमेस्टिक हार्डवीकी है ये सरीसर्प कक्षा का प्राणी है।
हिन्दी भाषा में इसे सांडा के नाम से जाना जाता है। सीमित भौगोलिक परिस्थितियों में पाया जाता है और कई बार तो ये कुछ मील परिधि में ही मिलता है। अपने ताक़तवर पंजों से बिल खोदता है और इसका चौड़ा और भोथरा थूथन इसके बिल में धुसने में सहायता करता है, इसका सर तिकोना होता है इसकी ख़ास पहचान है प्रत्येक जांघ पर एक बड़ा काला धब्बा, नर की लम्बाई पैंतालीस सेंटीमीटर के आस पास होती है और मादा अपेक्षकृत कम लम्बी होती है।
सखी इस पीले भूरे रंग वाली छिपकली के बारे में कुछ और सुनों, इस छिपकली के तीन दांत होते हैं एक ऊपर और दो नीचे। अप्रेल माह के अन्तिम और मई माह के प्रथम सप्ताह में ये छिपकली मदकाल में होती है, सवेरे से दोपहर तक सहवास क्रिया के दौरान नर भूरा रंग प्रर्दशित करता है और आक्रामक बना रहता है जबकि मादा लेथार्जिक। इनके पन्द्रह से बीस अंडे होते है जिनमे से निकलने वाले बच्चों में से आधे ही जीवित रह पाते हैं।
सखी राजा के लिए सांडा पकडने गया अर्थलोभ मारा-मारा फिरता रहा उसने कई प्रकार की छिपकलियाँ पकड़ी, उनमे से ज्यादातर गोह निकली। थके हारे अर्थलोभ को एक आदिवासी समाज ने सहारा दिया और उनका पता बताया अब मैं तुम्हें इक्कीसवीं सदी के एक सीमान्त गाव डंडाली के एक आदिवासी युवा भूरा भील से सुनवाती हूँ कि अर्थलोभ को सफलता कैसे हाथ लगी।
साब, बिल में हाथ डालने से सांडा नहीं मिलता, यह तो अपना बिल मिट्टी से ढक कर बैठता है, हम सबसे पहले वो बिल ढूँढते हैं जिन्हें ताज़ा मिट्टी से ढका गया हो फ़िर उसका मुंह खोल कर उसमे दो तीन मीटर लम्बी कैर की लकड़ी डालते हैं अगर लकड़ी हिलती है तो उसमे जरूर सांडा होता है। कुछ लोग धुंआ करके और कुछ खोद कर सांडा पकड़ लेते हैं, पकड़ में आते ही इसकी कमर तोड़ देते हैं ताकि ये भाग ना सके। घर ले जाकर हम इसका सफ़ेद मांस पका कर खाते हैं, इसकी पूंछ के पास लहसुन के आकर की दो कॉपियाँ मिलती है उनको तवे पर गर्म करने से तेल निकलता है इसके प्रयोग से आदमी मर्द हो जाता है।
हे सखी बीसवीं सदी के भारत में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत इसे संरक्षित घोषित किया जाएगा तब भी अनूपगढ़ थाना हलका में कई सौ सांडों के साथ शिकारी पकड़े जायेंगे और उन पर अभियोग चलेगा किंतु अर्थलोभ की सफलता से राजा कामलोभ अतिप्रसन्न हुआ, उसको कई स्वर्णमुद्राएँ पारितोषिक के रूप में दी।
विधि विधान से उन छिपकलियों का प्रतिदिन तेल निकला जाने लगा, उस तेल की मालिश से कामलोभ ने स्फूर्ति का अनुभव किया किंतु कुछ ही दिनों में हालात पहले जैसी हो गई।
काम लोभ ने सम्मानलोभ से निराशापूर्वक पूछा, राजवैद्य जी असर जितना आया था उससे दुगुना जा चुका है ऐसा क्यों ? सम्मानलोभ ने क्या कहा उसको सुनाने से अधिक उपयुक्त है इक्कीसवी सदी के चिकित्सक, चर्म एवं गुप्त अंगों के रोगों में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने वाले डॉ बी एल मंसूरिया की बात बताती हूँ।
उन्होंने कहा यह तेल कोई औषधि नहीं है इसमे पॉली अन्सेच्युरेटेड फैटी एसिड होते हैं, इसे ऐसा समझिये कि तरल रूप में वसा होती है। इसमे कोई चिकित्सकीय गुण नहीं होता है वरन इसकी मालिश से बॉडी लिगामेंट को आराम मिल सकता है। पुरूष में स्तम्भन के मामलों में यह साफ़ है कि इसका सीधा सम्बन्ध मानसिक स्थिति से है कोई एक लाख पुरुषों में किसी एक को लिंग सम्बन्धी समस्या हो सकती है।
कथा सुनते सुनते इस बार दूसरी सखी ने प्रश्न कर लिया। फ़िर राजा ने क्या किया ?
सखी यह प्रश्न उचित है, राजा के पास अब एक ही मार्ग बचा था राज्य की सीमा पर रह रहा एक तपस्वी, तो कामलोभ अपने व्याकुल मन और आहत इच्छाओं को लेकर उनके द्वार पहुँचा, इस वार्तालाप से पूर्व एक आखिरी वक्तव्य तुमको सुनाना जरूरी है, इक्कीसवीं सदी की एक मनोवैज्ञानिक है डॉ श्रीमती राठी उन्होंने कहा हमारे शरीर के प्रति जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, लड़के लड़कियां आयु के साथ हो रहे शारीरिक बदलावों से कई बार असहज हो जाते हैं इनके समाधान वे नए दौर की फिल्मों, वयस्कों की पत्र पत्रिकाओं और सबसे भयानक इन्टरनेट के दुरुपयोग से जुटाते हैं यह अधकचरा ज्ञान कुंठा और अपराध को जन्म देता है और कुछ को तेल बेचने वाले ठगते हैं।
तपस्वी से मिल कर आया कामलोभ आनंद से पूर्ण लग रहा था संध्या समय स्वार्थलोभ ने पुनः एक प्रयास किया राजा को काम के अधीन करने का, उसने ठीक वैसा ही किया जैसा संजय व्यास ने एक बड़े नगर की व्यस्त सड़क के किनारे समय काटने की जुगत में देखा था। एक मदारी जैसा आदमी सड़क पर तमाशा लगा के खड़ा था, चादर पर एक छिपकली रखी थी और ज्ञान बांटता हुआ कह रहा था, भाई साब ध्यान दीजिये, एक आप हैं जो घर में सुख नहीं उठा पाते और आपकी जगह अब पालतू जानवर ने ले ली है।
मेरे पास उसका एक फोटो भी है... वो भी दिखाऊंगा आपको, तब पता चलेगा कि मर्द कौन है? वह अपना पाउडर बेचता जाता लोग पाँच रुपये में मर्द बनते जाते। दो घंटे तक उसने वह फोटो नहीं दिखाया, किसी के पास इतना वक्त भी नहीं होता लेकिन संजय भाई के पास था और उन्होंने कहा अब फोटो दिखाना पड़ेगा। मदारी ने पास आ कर धीरे से कहा बाबू साहब क्यों गरीब के पेट पर लात मारते हो ? छोटे छोटे बच्चे है उनके लिए करना पड़ता है।
तो सखी स्वार्थलोभ भी यही कर रहा था लेकिन तपस्वी ने कहा "हे सखी काम, लोभ, मोह और माया से दुनिया चलती है इनमे से किसी एक के अधीन हो जाने पर संतुलन बिगड़ जाता है और व्यक्ति तत्पश्चात समाज व्याधिग्रस्त हो जाता है इस व्याधि का उन्मूलन छिपकली को मारने में नहीं है।"
आज से एक हज़ार साल बाद भी विज्ञान के युग में भी मनुष्य एक रेगिस्तानी छिपकली का वंश समाप्त करने को प्रणरत रहेगा। तो उन समझदार विवेकशील लोगों की तुलना में इस कामलोभ के बारे में तुम क्या सोचती हो ? इतना कह कर कथा सुना रही सखी कुछ दूर झाड़ियों के पीछे लघुशंका करने गई फ़िर धीरे-धीरे छिपकली में बदल कर आंखों से ओझल हो गई।
अकेली रह गई सखी ने बाद में कहीं सुना कि उस राजा ने अपना नाम बदल कर संयमलोभ रख लिया था।
बड़ा विचित्र नाम है ?
सखी कथा के असीम आनंद को प्राप्त करने का एक आवश्यक तत्व यह भी है कि जिज्ञासा को नियंत्रण में रखा जाए और कथाकार से अनावश्यक प्रश्न ना पूछे जायें। इससे कथा की लम्बाई बढती है और रस की बूंदें विलंब से टपकती है। तो, बल से प्राप्त राज्य तदन्तर अनंत इच्छाओं की पूर्ति के लिए बल पूर्वक किए गए राज्य विस्तार के कारण उसका नाम बललोभ था किंतु कालांतर में कामक्रियाओं के अधीन हो जाने के कारण उसे कामलोभ नाम से जाना जाने लगा।
कामलोभ का मन राज कार्यों से एका एक उचट गया वह एक ऐसी व्याधि से ग्रसित हो गया जिसके सूत्र उसकी किशोरावस्था से जुङे हैं। राजपुत्र होने के कारण किसी जतन से उसे हरम तक पहुँचने में अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता, अल्पायु में नाना प्रकार की काम क्रीडाएं देख लेने के कारण वह कई प्रकार की भ्रांतियों और मनोविकारों से ग्रसित हो गया था। आने वाली इक्कीसवीं सदी में ये हरम इन्टरनेट जैसे एक माध्यम से हर घर में पहुँच जाएगा इसलिए ये कथा समीचीन है और इसको सुनाने से प्रयोजन भी सिद्ध होता है।
कामलोभ के रति क्रीड़ा में लिप्त रहने के कारण उसके मंत्री स्वार्थलोभ के सभी स्वार्थ सिद्ध होते थे अतः उसने राजा को सुझाव दिया कि किसी ऐसी औषध का पता लगाया जाए जो उनके सुख में श्रीवृद्धि कर सके। अपने मन की बात मंत्री के मुंह से सुन कर कामलोभ को अतिप्रसन्नता हुई और स्वार्थलोभ को पुरस्कृत करने का विचार मन में आया किंतु अपनी प्रतिष्ठा और उम्र का सोच कर मात्र सहमती का संकेत किया।
मंत्री ने तत्काल राजवैध्य, सम्मानलोभ तक दौड़ लगायी और राजा का मंतव्य बताया। यह सुनते ही सम्मानलोभ ने असमर्थता दिखाते हुए कहा मंत्री जी इस तरह का कोई औषध नहीं है जो शारीरिक रूप से समर्थ व्यक्ति को और अधिक काम बलवान बना सके हाँ कुछ उत्तेजक और मादक पदार्थ अवश्य हैं जो क्षणभंगुर सुख प्रदान करते है किंतु उनके मूल्य के रूप में राजपाट भी चुकाना पड़ सकता है इनका सेवन करने पर मनुष्य पशु सदृश्य हो जाता है।
मंत्री के अत्यधिक आग्रह पर सम्मानलोभ ने बताया कि पूरे उत्तर भारत और काठियावाड़ क्षेत्र में एक कांटेदार पूंछ वाली छिपकली पाई जाती है उससे कुछ उपाय बन सकता है। स्वार्थलोभ ने अपने आदमी अर्थलोभ को उसकी खोज में भेजा, कई महीनों तक निरंतर प्रयास के पश्चात भी वह उपयुक्त छिपकली नहीं ढूँढ पाया, इधर राजा की बेचैनी बढती जा रही थी ढलती उम्र में संयम से काम लेने के स्थान पर वह हर क्षण व्यग्र हुआ जाता, काम का दलदल उसे अपने पाश से मुक्त करने के स्थान पर अपने भीतर समेटता जाता।
अर्थलोभ के खाली हाथ लौट आने पर सम्मानलोभ ने इस बार उसे विस्तार से छिपकली के रंग रूप के बारे में बताया, उसने जो सूचनाएं दी उससे भी उन्नत जानकारी के लिए सखी मैं तुम्हें इक्कीसवीं सदी की एक ऐसी पाठशाला ले चलती हूँ जिसका विस्तार कई किलोमीटर तक फैला है इसमे कई हज़ार विद्यार्थी पढ़ते है और शोध करते है, प्राणिशास्त्र विभाग के अध्येता मनोज चौधरी ने बताया कि ये एक बालू छिपकली है। इसका वैज्ञानिक नाम युरोमेस्टिक हार्डवीकी है ये सरीसर्प कक्षा का प्राणी है।
हिन्दी भाषा में इसे सांडा के नाम से जाना जाता है। सीमित भौगोलिक परिस्थितियों में पाया जाता है और कई बार तो ये कुछ मील परिधि में ही मिलता है। अपने ताक़तवर पंजों से बिल खोदता है और इसका चौड़ा और भोथरा थूथन इसके बिल में धुसने में सहायता करता है, इसका सर तिकोना होता है इसकी ख़ास पहचान है प्रत्येक जांघ पर एक बड़ा काला धब्बा, नर की लम्बाई पैंतालीस सेंटीमीटर के आस पास होती है और मादा अपेक्षकृत कम लम्बी होती है।
सखी इस पीले भूरे रंग वाली छिपकली के बारे में कुछ और सुनों, इस छिपकली के तीन दांत होते हैं एक ऊपर और दो नीचे। अप्रेल माह के अन्तिम और मई माह के प्रथम सप्ताह में ये छिपकली मदकाल में होती है, सवेरे से दोपहर तक सहवास क्रिया के दौरान नर भूरा रंग प्रर्दशित करता है और आक्रामक बना रहता है जबकि मादा लेथार्जिक। इनके पन्द्रह से बीस अंडे होते है जिनमे से निकलने वाले बच्चों में से आधे ही जीवित रह पाते हैं।
सखी राजा के लिए सांडा पकडने गया अर्थलोभ मारा-मारा फिरता रहा उसने कई प्रकार की छिपकलियाँ पकड़ी, उनमे से ज्यादातर गोह निकली। थके हारे अर्थलोभ को एक आदिवासी समाज ने सहारा दिया और उनका पता बताया अब मैं तुम्हें इक्कीसवीं सदी के एक सीमान्त गाव डंडाली के एक आदिवासी युवा भूरा भील से सुनवाती हूँ कि अर्थलोभ को सफलता कैसे हाथ लगी।
साब, बिल में हाथ डालने से सांडा नहीं मिलता, यह तो अपना बिल मिट्टी से ढक कर बैठता है, हम सबसे पहले वो बिल ढूँढते हैं जिन्हें ताज़ा मिट्टी से ढका गया हो फ़िर उसका मुंह खोल कर उसमे दो तीन मीटर लम्बी कैर की लकड़ी डालते हैं अगर लकड़ी हिलती है तो उसमे जरूर सांडा होता है। कुछ लोग धुंआ करके और कुछ खोद कर सांडा पकड़ लेते हैं, पकड़ में आते ही इसकी कमर तोड़ देते हैं ताकि ये भाग ना सके। घर ले जाकर हम इसका सफ़ेद मांस पका कर खाते हैं, इसकी पूंछ के पास लहसुन के आकर की दो कॉपियाँ मिलती है उनको तवे पर गर्म करने से तेल निकलता है इसके प्रयोग से आदमी मर्द हो जाता है।
हे सखी बीसवीं सदी के भारत में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत इसे संरक्षित घोषित किया जाएगा तब भी अनूपगढ़ थाना हलका में कई सौ सांडों के साथ शिकारी पकड़े जायेंगे और उन पर अभियोग चलेगा किंतु अर्थलोभ की सफलता से राजा कामलोभ अतिप्रसन्न हुआ, उसको कई स्वर्णमुद्राएँ पारितोषिक के रूप में दी।
विधि विधान से उन छिपकलियों का प्रतिदिन तेल निकला जाने लगा, उस तेल की मालिश से कामलोभ ने स्फूर्ति का अनुभव किया किंतु कुछ ही दिनों में हालात पहले जैसी हो गई।
काम लोभ ने सम्मानलोभ से निराशापूर्वक पूछा, राजवैद्य जी असर जितना आया था उससे दुगुना जा चुका है ऐसा क्यों ? सम्मानलोभ ने क्या कहा उसको सुनाने से अधिक उपयुक्त है इक्कीसवी सदी के चिकित्सक, चर्म एवं गुप्त अंगों के रोगों में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने वाले डॉ बी एल मंसूरिया की बात बताती हूँ।
उन्होंने कहा यह तेल कोई औषधि नहीं है इसमे पॉली अन्सेच्युरेटेड फैटी एसिड होते हैं, इसे ऐसा समझिये कि तरल रूप में वसा होती है। इसमे कोई चिकित्सकीय गुण नहीं होता है वरन इसकी मालिश से बॉडी लिगामेंट को आराम मिल सकता है। पुरूष में स्तम्भन के मामलों में यह साफ़ है कि इसका सीधा सम्बन्ध मानसिक स्थिति से है कोई एक लाख पुरुषों में किसी एक को लिंग सम्बन्धी समस्या हो सकती है।
कथा सुनते सुनते इस बार दूसरी सखी ने प्रश्न कर लिया। फ़िर राजा ने क्या किया ?
सखी यह प्रश्न उचित है, राजा के पास अब एक ही मार्ग बचा था राज्य की सीमा पर रह रहा एक तपस्वी, तो कामलोभ अपने व्याकुल मन और आहत इच्छाओं को लेकर उनके द्वार पहुँचा, इस वार्तालाप से पूर्व एक आखिरी वक्तव्य तुमको सुनाना जरूरी है, इक्कीसवीं सदी की एक मनोवैज्ञानिक है डॉ श्रीमती राठी उन्होंने कहा हमारे शरीर के प्रति जिज्ञासा होना स्वाभाविक है, लड़के लड़कियां आयु के साथ हो रहे शारीरिक बदलावों से कई बार असहज हो जाते हैं इनके समाधान वे नए दौर की फिल्मों, वयस्कों की पत्र पत्रिकाओं और सबसे भयानक इन्टरनेट के दुरुपयोग से जुटाते हैं यह अधकचरा ज्ञान कुंठा और अपराध को जन्म देता है और कुछ को तेल बेचने वाले ठगते हैं।
तपस्वी से मिल कर आया कामलोभ आनंद से पूर्ण लग रहा था संध्या समय स्वार्थलोभ ने पुनः एक प्रयास किया राजा को काम के अधीन करने का, उसने ठीक वैसा ही किया जैसा संजय व्यास ने एक बड़े नगर की व्यस्त सड़क के किनारे समय काटने की जुगत में देखा था। एक मदारी जैसा आदमी सड़क पर तमाशा लगा के खड़ा था, चादर पर एक छिपकली रखी थी और ज्ञान बांटता हुआ कह रहा था, भाई साब ध्यान दीजिये, एक आप हैं जो घर में सुख नहीं उठा पाते और आपकी जगह अब पालतू जानवर ने ले ली है।
मेरे पास उसका एक फोटो भी है... वो भी दिखाऊंगा आपको, तब पता चलेगा कि मर्द कौन है? वह अपना पाउडर बेचता जाता लोग पाँच रुपये में मर्द बनते जाते। दो घंटे तक उसने वह फोटो नहीं दिखाया, किसी के पास इतना वक्त भी नहीं होता लेकिन संजय भाई के पास था और उन्होंने कहा अब फोटो दिखाना पड़ेगा। मदारी ने पास आ कर धीरे से कहा बाबू साहब क्यों गरीब के पेट पर लात मारते हो ? छोटे छोटे बच्चे है उनके लिए करना पड़ता है।
तो सखी स्वार्थलोभ भी यही कर रहा था लेकिन तपस्वी ने कहा "हे सखी काम, लोभ, मोह और माया से दुनिया चलती है इनमे से किसी एक के अधीन हो जाने पर संतुलन बिगड़ जाता है और व्यक्ति तत्पश्चात समाज व्याधिग्रस्त हो जाता है इस व्याधि का उन्मूलन छिपकली को मारने में नहीं है।"
आज से एक हज़ार साल बाद भी विज्ञान के युग में भी मनुष्य एक रेगिस्तानी छिपकली का वंश समाप्त करने को प्रणरत रहेगा। तो उन समझदार विवेकशील लोगों की तुलना में इस कामलोभ के बारे में तुम क्या सोचती हो ? इतना कह कर कथा सुना रही सखी कुछ दूर झाड़ियों के पीछे लघुशंका करने गई फ़िर धीरे-धीरे छिपकली में बदल कर आंखों से ओझल हो गई।
अकेली रह गई सखी ने बाद में कहीं सुना कि उस राजा ने अपना नाम बदल कर संयमलोभ रख लिया था।
बहुत ही नायाब तरीके से आपने ज्ञान बांटा है. आभार.
ReplyDeletesach mein ek katha ke madhyam se aapne kitni sunder baat samjhayi,shukran.
ReplyDeleteवाह!! बहुत अच्छे.
ReplyDeleteapni kahane ka naayab tareeka, jiske last me moral of the story bhi milta hai....!
ReplyDeleteachchha prayog
aapka pura lekh padh gayi...romanchak...manoranjak...aur gyanvardhak lga....bhot bhot aabhar is jankari ke liye.....!!
ReplyDeleteWow...that was very interesting.
ReplyDeleteवैसे तो पूरी कहानी ही अछी है और reader को बान्धे रखती है। हमे अंत बहुत अछा लगा जिसमे कहनी सुनाने वाली लडकी छिपकली मे बदल जाती है। और राजा भी अपना नाम बदल लेते है।
हमे छिपकली से बहुत डर लगता है। पर कहानी के मध्यम से काफी कुछ सीखने को भी मिला।
बेहद अछी रचना। आपको बधाई।
हर काल के मुद्दे वही हैं
ReplyDeleteसिर्फ माध्यम बदले हैं
कथा पुराण में दो काल को किस तरह पिरोया है …
जवाब नहीं...
अपेक्षाकृत वर्जित माने जाते रहे विषय को जोड़े रखकर आपने एक निरीह प्राणी के पक्ष में गज़ब का शास्त्रार्थ किया है.एक भ्रान्ति ने इस निर्दोष का सदियों से जीना हराम कर रखा है.मैं इसे आपकी खूबी कहूँगा कि कथा के सूत्रों से आपने एक विचार, एक नए विमर्श को सामने रखा है.और इस कुशलता से कि चटखारे लेने वालों की तरह कोई इसका कुत्सित पाठ न कर सके.
ReplyDeleteप्रतीकों में प्रकट किया गया कहानी का भाव सुन्दर है कहानी का प्रस्तुतीकरण बेहद रोचक है,कहानी अपनी सम्पूर्णता के साथ अपने उद्वेश्यों को प्राप्त करती है ....बधाई....!
ReplyDeleteWow Kishore ji... I have visted your blog after a long time tonight. And I am so pleasantly surprized, great post! :) I have got some catching up to do...
ReplyDeleteबढिया प्रस्तुतीकरण !
ReplyDeleteप्रभावपूर्ण और रोचक कथा शैली में भी आपकी वैज्ञानिक सोच झलकती है। सचमुच सरीसृप वर्ग का यह निरीह प्राणी हर काल में कामलोभ, स्वार्थलोभ और अर्थलोभ का शिकार रहा है। ऐसे ही बहुत से जीवों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है लेकिन मानव प्रवृत्ति समय के साथ-साथ अधिक भयावह होती जा रही है।
ReplyDeletepoori kahani to nahi padhi...par bahut dino baad hindi padhke bahut accha laga....blogegr ke comments section mein hindi mein kaise likhte hain ho sake to bata dijiye....aj moumita ke blogs padhne mein hi time chala gaya...agli baar aapke blogs padhungi..:)
ReplyDeletesubhkaamnayen.
ReplyDeleteapki rachnaye kafi alag aur manoranjak hai.
ReplyDeleteबडा ही रोचक वृत्त चित्र है, इसे हम तक लाने का आभार।
ReplyDelete----------
तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
वाह!!!सचमुच बहुत सुन्दर.
ReplyDeletebahut dinon ke baad shudh hindi padhne ko mila hi.......bahut acha lag raha hi!!!Likhte rahiye....hum padhtey rahengey!
ReplyDeletebahut achchi kritiyan hoti hain aapki. badhai!
ReplyDeletevery beautiful story.
ReplyDeleteवाह.. अच्छी रचना है भई, संभवतः पंचतंत्र से... इस प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकारिये.
ReplyDeleteयह आकाशवाणी के लिए बनाया गया पर्यावरण और युवा विषयक वृत्त चित्र का अंश है इसमें कुछ साक्षात्कारों को प्रस्तुत किया गया है, मैंने हमारी एक हज़ार साल की समझ पर सवाल उठाने के उद्धेश्य से भाषा का चयन पाली, संस्कृत और प्रचलित खड़ी बोली से प्रभावित हो कर इस तरह का रखा कि ये पुरातन होने का आभास प्रदान करे जिससे एक हज़ार वर्ष के अंतराल को रचा जा सके. कहानी कहीं से ली नही गयी है वैसे इसमें कहानी जैसा कुछ है भी नही.
ReplyDeleteinformative & alertive hai....
ReplyDeletekeep it up.
आज आपका लेख पढ़ा दादा, बहुत आनंद आया इसमें कुछ लोकोक्तियों को भी जगह प्रदान करते तो अच्छा रहता. लोक देवता पाबू जी की कथा बांचने वाली भील जाति का प्रिय भोजन है सांडा, मैं भी इस पर कुछ करता हूँ फिर आपको बताऊंगा.
ReplyDeleteअसाधारण शिल्प के जरिये दी गई नैतिक शिक्षा बहुत रोचक है....
ReplyDeletewow!!
ReplyDeletereally a great post......
kaaaafi achhaese likha gaya hai..
ReplyDeleteThat's really mesmerizing...!!
किशोरभाई,अपना मोबाईल नंबर दीजिएगा। मेरा नंबर है 9425012329
ReplyDeleteMadam Psychiatrist की बात बिलकुल ठीक है.
ReplyDeleteUromastyx hardwickii के जीवन को सचमुच बहुत खतरा है.
Aphrodisiacs का एक बहुत बड़ा मार्केट है और यहाँ सांडे का तेल, चीते की हड्डियाँ, गेंडे के सींग से लेकर सब कुछ बिकता है और वोह भी सोने से महंगा. viagra के आने के बाद भी something unique and new की डिमांड मार्केट में लगातार बनी रहेगी.
नमन आपकी लेखनी को ...... किस प्रकार एक कहानी के माध्यम से जागरूकता लाने का कार्य किया है....
ReplyDeleteज्ञान के चक्षु खुले और कई भ्रांतियों का निकारण किया.
ये शाकाहारी हे या माँसाहारी
ReplyDeleteउत्तम सिंह
धन्यवाद के सी
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