Sunday, April 11, 2010

अंजलि, तुम्हारी डायरी से बयान मेल नहीं खाते हैं



निस्तब्ध कोठरी के कोनों से निकलकर अँधेरा बीच आँगन में पसरा हुआ था। दीवारों से सटी चुप्पी से अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल था कि यहाँ पाँच लोग बैठे हैं। उन सब लोगों में एक ही साम्य था कि वे सभी एक लड़की को जानते थे या उसकी ज़िंदगी को कहीं से छू गए थे। चमकदार सड़क से होता हुआ गठीले बदन वाला ऑफिसर मद्धम प्रकाश वाली इस बड़ी कोठरी में दाखिल हुआ। दुनिया देख कर घिस चुकी उसकी आँखें छाया प्रकाश की अभ्यस्त थीं। ऑफिसर ने कम रोशनी में भी पंक्ति बना कर बैठे लोगों को पहचान लिया। एक पर्दा कोठरी को दो भागों में बाँट रहा था। नीम अँधेरे में ये पर्दा और अधिक भय एवं रहस्य को बुन रहा था।

ऑफिसर ने पर्दे के ठीक आगे, एक बिना हत्थे वाली बाबू-कुर्सी रखी। उस पर अपना पाँव रखते हुए बोला "कोतवाल साहब, अब रीडर जी और एल. सी. को बुलाओ।" बिना पदचाप के दो साये आये और कोने में एक टेबल के पीछे रखी दो कुर्सियों पर बैठ गए। जबकि ऑफिसर अभी भी उसी मुद्रा में खड़ा था। सन्नाटा तोड़ने के लिए कोई तिनका भी न था, मानो ऑफिसर इसे एक मनोवैज्ञानिक हथियार की तरह धार दे रहा हो। कै हो जाने से पहले की हालात में बैठे हुए लोगों के चहरे पर यहाँ से बाहर निकल पाने की उम्मीद जगी, जब कुछ क्षणों के बाद बयान दर्ज़ किये जाने की प्रक्रिया आरंभ हुई।

ऑफिसर का इशारा पाकर एक लड़का खड़ा हुआ और बोला विनीत श्रीवास्तव यानि दोस्त

पहचान ?
सर, मेरे पिता नहर परियोजना में इंजीनियर हैं और माँ कॉलेज में दर्शनशास्त्र पढ़ाती हैं। मैं बेंगलुरु के एक निजी अभियांत्रिकी कॉलेज में पढ़ता हूँ।

क्या जानते हो लड़की के बारे में ?

मैंने उसे पहली बार घर के बाहर दूब में पानी देते हुए देखा था फिर वह कई बार कॉलेज जाती हुई दिखी। हमारी जान पहचान बढ़ती गयी क्योंकि हम दोनों के पापा एक ही ऑफिस में थे। सर फिर हमारी दोस्ती हो गयी थी। कभी-कभी हम शाम को पार्क में मिला करते थे। ऐसे ही जैसे और लड़के लड़कियाँ मिला करते हैं। वहाँ उसके साथ बैठकर शाम को पंद्रह-बीस मिनट रोज़ बात किया करता था। वह कई बार मुझसे कुछ किताबें मँगाया करती थी। मैं अपने दोस्तों से लाकर उसे दिया करता था। वह पढ़ने में बहुत अच्छी थी, वह देखने में बेहद सुंदर थी। उसके कपड़े पहनने का सलीका भी आधुनिक था। वह किसी से डरती नहीं थी और उसने मुझे दोस्त कहा था इसलिए मैं उसे पसंद करता था।

कितना पसंद ?

विनीत ने बुझी हुई आशंकित निगाह से देखा और कहा। सर पहले करता था मगर बाद में उसका व्यवहार बदलने लगा बहुत देर तक पार्क में बैठी रहने लगी। वह अजीब से सवाल भी करने लगी। मुझे कहती थी कि तुम बदल गए हो। जबकि मैं और वह सिर्फ दोस्त ही थे। हम छोटे से क़स्बे में रहते हैं, वहाँ लोग कई तरह की बातें बना लिया करते हैं। इस तरह से बागीचों में मिलना अच्छी बात नहीं मानी जाती है। ये मैंने उसे समझाया लेकिन उसने मेरी बात नहीं मानी। एक बार वह मेरा हाथ पकड़ कर बैठी थी तब मेरी मम्मी ने देख लिया और फिर मुझे बहुत डांटा गया। हम दोनों को अलग रहने की हिदायतें दी गयीं। उसके बाद भी वह ज़िद करती थी मगर मैं फिर कभी उससे नहीं मिला।

कभी नहीं ?

जी कभी नहीं।

ऑफिसर ने लड़के को उसी जगह बैठ जाने को कहा जहाँ से वह खड़ा हुआ था। उसके आगे एक सुंदर-सी नाटे कद की लड़की बैठी हुई थी। लड़की ने उठकर अपना नाम बताया। रमा दीवान। मैं अंजलि के साथ पढ़ती थी।

रमा दीवान यानि सहपाठी
एक रात को कॉलेज हॉस्टल में हो-हल्ला सुन कर मैं अपने रूम से बाहर निकली तब पहली बार उसके नाम पर मेरा ध्यान गया, अंजलि सिंह। हॉस्टल की कुछ लड़कियों ने वॉर्डन से शिकायत की थी कि पास के रूम से सिगरेट के धुँए की गंध आ रही है। उसका रूम खुलवाया गया। उसमे से बहुत तेज गंध आ रही थी। आप जानते हैं कि बंद कमरे में भले ही एक सिगरेट पी जाये किंतु उसमें बहुत देर तक गंध बसी रहती है। अंजलि रूम में रखे हुए लकड़ी के पाट पर चुप बैठी थी और शिकायत करने वाली लड़कियाँ अपनी नाक को इस तरह सिकोड़ रही थीं जैसे वे किसी अस्पृश्य बू से नापाक हो गयी हों। कमरे की बालकनी में बहुत सारे सिगरेट के टोटे पड़े हुए थे। वॉर्डन और उनकी सहायक ने हिकारत भरी निगाह से अंजलि और उसके सामान को देखा। उनकी निगाहें इस अक्षम्य अपराध पर सब कुछ उठा कर बाहर फेंक दिये जाने जैसे भाव दिखा रही थीं।

सर, अंजलि को कल सुबह ऑफिस में आने को कह कर वॉर्डन चली गयीं। कुछ लड़कियाँ फुसफुसाती, मंद-मंद हँसती और कुछ चेहरे पर आश्चर्य के भाव बनाते हुए, अपने-अपने कमरे में चली गयीं। मुझे इसतरह एक लड़की को अकेली छोड़ कर आना अच्छा नहीं लगा तो मैं उसके पास रुक गयी। “क्या हुआ?’’ मेरे पूछने पर बोली। “क्या हुआ सिगरेट ही तो पी है” उसके चेहरे पर किसी तरह के नए भाव नहीं थे। वह बेहद शांत थी और उसकी आँखें किसी शून्य के मोह में बँधी हुई दिख रही थीं। “किसने सिखाया तुम्हें सिगरेट पीना?” अंजलि ने एक डूबी हुई किंतु गहराई से उपजी मुस्कान से कहा- “मेरे दोस्त ने।“ उस रात के बाद मैं हमेशा उसे अपने साथ रखती थी लेकिन उसका अकेलापन चारों ओर से उसे घेरे रहता था।

उससे घनिष्ठता के बाद के दिनों में, कई बार वह शाम होने से पहले हॉस्टल से निकल जाया करती थी। रात को मालूम नहीं किसी तरीके से अपने रूम में बिना किसी को ख़बर हुए पहुँच जाया करती थी। अंजलि ने एक बार मुझे बताया था कि वह किसी मंदिर जाया करती है। वह सुनसान पहाड़ी के बीच में बना हुआ है। वहाँ एक बाबा रहता है मगर बड़ा बेकार आदमी है। एक ख़ास बात उसने मुझे बताई थी, जिसे मैं आज तक नहीं भूल पाई हूँ। वह एक शाम बेहद निराश होकर सड़क पर खड़ी थी और उसने एक ऑटो रुकवाया था फिर जब ऑटो वाले ने पूछा कहाँ जाना है तो उसने कहा था। “जहाँ चाहो ले चलो।” उसने जब मुझे ये बताया तो मैं उसके एकाकीपन से डर गयी थी।

सर हम लोग कोई एक साल तक साथ में रहे थे, उसके बाद।

एक मौन का सिरा थामे हुए, रमा चुप हो गयी। ऑफिसर ने तीसरे आदमी की तरफ देखा।

मंडल नाथ यानि पहाड़ी शिव मंदिर के महंत
बम भोले!, ईश्वर सबका भला करें। साहेब, उस दिन शाम के सात बजने को थे और मैं आरती के लिए नहाकर मंदिर की झुक आई ध्वजा को सही करने के लिए दीवार पर खड़ा हुआ था। वहाँ से मैंने देखा एक लड़का पहाड़ी से कूद कर अपनी जान देना चाहता है। मैंने चिल्लाना उचित नहीं समझा क्योंकि मैं ऐसा करता तो वह निश्चित ही कूद जाता। इसलिए मैं बिना आवाज़ किये उस तक पहुँचा और उसको कमर से कस कर पकड़ लिया। पहाड़ी के ठीक ऊपर खड़ा देखकर जिसे मैंने लड़का समझा था, वह वास्तव में एक लड़की थी। उसने कमीज और पैंट पहनी थी इसलिए मुझे धोखा हो गया था। मैं उसे अपने साथ मंदिर तक लाया और पूछा- “बेटी ऐसा गलत काम क्यों करना चाहती हो?” साहेबान वह बेहद दुखी लड़की थी। हमारे समाज में स्त्रियों को घनघोर कष्ट दिये जाते हैं, कुछ हल्के होते हैं जिन्हें आप शारीरिक कहते हैं और बाकी गंभीर जिन्हें मानसिक कहा जाता है। वह मानसिक कष्टों से घिरी थी। ईश्वर की कृपा से उस बच्ची ने मेरी बात मानी अपने मन के विकारों को प्रकट किया। प्रभु के द्वार पर मैंने उसे चरणामृत दिया, धूणे की चुटकी भर राख उसको दी और फिर वह चली गयी।

और क्या हुआ था उस दिन ?

मैं भगवान का भक्त हूँ, उसकी आराधना में लीन रहता हूँ। उसे सीढियाँ उतरते हुए देख लेने के बाद, मैं आश्वस्त हो गया था। मेरा मन भी प्रसन्न था कि देव चरणों में बैठने से मैं ये शुभ कार्य कर सका। ईश्वर की लीला अपरंपार है फिर कभी उसका आगमन उस मंदिर में नहीं हुआ।

बाबा की जिज्ञासु आँखों के कोरों पर अटकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा को अनदेखा करते हुए ऑफिसर ने चौथे आदमी की तरफ देखा, जिसने नीली जींस पर खाकी रंग का कमीज पहना हुआ था।

बीदा रावत यानि टैक्सी ड्राईवर
नमस्कार साब! सितंबर का महीना था और शाम को पाँच बजे थे, तब मैंने उसे पहली बार देखा था। उसने मुझे रुकने का इशारा किया। वह टैक्सी में बैठी और बोली, फतेहसागर चलो। मैं उसको वहाँ ले गया। उसने मुझे पंद्रह रुपये दिये और झील के सामने पहाड़ी पर बने बागीचे की सीढियाँ चढ़ गयी। मैं वहाँ से घाटी में अपने घर चला गया। शाम की चाय पीकर जब वापस जा रहा था तब सड़क के किनारे कुछ लोग गोल घेरा बनाये हुए खड़े थे। मैंने उन लोगों के बीच जाकर देखा तो वही लड़की सड़क के किनारे आधी बेहोशी जैसी हालात में थी।

साहब, मैंने लोगों से कहा कि इसे अस्पताल पहुँचा देते हैं लेकिन मुँह पर पानी के छींटे मारने से वह होश में आने लगी थी। वह टैक्सी में बैठते ही बोली- “मैं यहाँ अकेली हूँ इसलिए मुझे अपने घर ले चलो।“ साहब मैं उसको अपने घर ले गया। मेरी बीवी ने उसको एक ग्लास जूस पिलाया, पंखे से हवा की। मैंने इशारा कर बीवी को एक तरफ बुलाया और कहा कि पता करे मामला क्या है? खामखाह हम न उलझ बैठें। उसने बताया कि वह यहाँ अकेली रहती है और उसका मन नहीं लगता इसलिए बाहर घूमने चली आया करती है और कमजोरी से चक्कर आ गया है। उसको अपने परिवार की बहुत याद आती है। जब हम ने देखा कि वह यहाँ आराम से है तो मैंने कहा- “तुम मुझे अपना भाई समझो और जब भी जी करे यहाँ भाभी के पास चली आया करो।“

बड़ी जल्दी रिश्तेदारी हो गयी ?
साब, बच्चों की कसम खा के कहता हूँ कि मैंने उस अकेली लड़की की मदद करने को ही बहन बोला था। वह मेरे राखी बाँध के गई। मेरी बीवी ने उसको अपने हाथों से गरम खाना खिलाया। परदेस में कहीं अपनापन मिल जाये तो बड़ा आसरा होता है। हाँ वो खुश थी, उसके बाद हमारे घर नहीं आई मगर उसने कहा था कि लौट के आएगी तब यहीं रुकेगी।

अधेड़ उम्र के इस आदमी ने दोनों हाथ एक याचक की तरह जोड़ लिए थे। एक चालीस-पैंतालीस साल की औरत अपनी जगह से उठ कर ऑफिसर के सामने चली आई।

बादामी यानि काम वाली बाई
अंजलि बेबी बहुत अच्छी लड़की थी साब, उसको संगत सही नहीं मिली। एक सुबह झाड़ू मारते हुए मैंने फर्श पर गिरी हुई, उसकी पैंट को अलमारी में टाँगा। उसमें एक टूटी हुई सिगरेट थी। मुझे उसी समय मालूम हो गया कि कुछ गड़बड़ है। मैं रोज़ उसका ध्यान रखने लगी। मुझे मालूम था कि बीड़ी पीती है तो जरुर कुछ गड़बड़ है। इसी चक्कर में एक दिन मैंने उसके पेट पर लाल निशान देखा तो उसे पकड़ लिया। फिर पूछा किसने किया? वह बहुत देर तक नहीं बोली फिर रोने लगी। उसको दोस्त लोगों ने ख़राब कर दिया था। उसके बदन पर नोंच के निशान देखकर मुझे भी अपनी पीठ याद आ गयी। ऐसा होता है सब औरत के साथ, पर साब उसकी तकलीफ़ थी कि ये शादी से पहले होने लगा। मैंने उसको बोला कि छोड़ दे सबको, अच्छा अफसर की बेटी है, अच्छा काम करो अच्छा से जीयो। वो मेरी सब बात सुन कर भी चुप रही।

किसने ख़राब किया ?
साब उसने कभी नाम बताया नहीं, वो बोलती थी कि कौन किसको ख़राब करता है? सब आप डूबते हैं। मुझे डूबे रहने दो। बाई, तुम बड़ी मूरख बात करती हो।

बादामी देवी के बयान की आखिरी पंक्ति बीदा रावत, मंडल नाथ और विनीत को किसी वेदवाक्य की तरह सुनाई दी। ज्यादा सवाल न पूछे जाने से और सख्ती किये जाने के भय से निकल आने के कारण कोठरी का मटमैला अँधियारा कुछ हल्का हो गया था। सब अपने फ़र्ज़ की अदायगी हो जाने के अहसास से कुछ आराम में आ गए थे। ऑफिसर अभी भी उसी पोजीशन में खड़ा हुआ था जैसे कोई विचारमग्न मूर्ति एक नियत अंतराल से निर्धारित सवाल पूछने के लिए बनाई गयी हो। घड़ीभर की ख़ामोशी के बाद ऑफिसर ने मीता पुरी को आवाज़ लगाई।

ठक-ठक की आवाज़ वाले कील लगे जूतों की जगह चीते जैसी चुप्पी वाले क़दमों से कंधे पर दो सितारे लगी वर्दी पहने हुए एक लड़की रौशनी से नीम अँधेरे की तरफ आकर सेल्यूट करके खड़ी हो गयी।

सर!, मीता पुरी यानि इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर फॉर स्युसाईड केस ऑफ़ अंजलि सिंह

जनाब थाना कोतवाली सिटी में सुबह आठ बजे सूचना मिली कि अशोक सिंह वल्द हनुवंत सिंह की पुत्री अंजलि की मौत हो गयी है। मौका मुआयना करने पर पाया गया कि किसी प्रकार के संघर्ष के निशान मर्ग कारित होने के स्थान पर नहीं थे। कमरे में सभी सामान सलामती के साथ था। दरवाज़े के अलावा कमरे में आ सकने के स्थान, खिड़की से भी किसी आमद का कोई संकेत नहीं पाया गया। लड़की के शरीर के नीला हो जाने के कारण उसको ज़हर दिये जाने की आशंका के चलते परिवारजनों को पोस्टमार्टम के लिए राज़ी किया गया। लड़की के चाल-चलन और ताअल्लुकात पर कोई एतराज़ पडौ़सियों को नहीं था।

इस जाँच के दौरान मुझे यानि मीता पुरी को मृतका की एक निजी डायरी भी मिली है। इसके कुछ पन्ने इस मर्ग को सुलझाने में अहम हैं।

अंजलि ने एक विनीत नामक लड़के के बारे में लिखा है।

तुम मुझे छूते हो तो अच्छा नहीं लगता, मगर तुम्हारी बातें मुझे बहुत अच्छी लगती हैं। आज की शाम हमेशा की तरह बहुत सुंदर होती अगर तुमने मुझे पार्क के मूर्तिकक्ष वाले कोने में ले जाकर, जानबूझ कर अपनी सौगंध देकर सिगरेट ना पिलाई होती। तुम कहते हो कि मैं मर जाऊँगा। मगर मैं ऐसा होने नहीं दूँगी। तुम्हारे लिए मैं हज़ार सिगरेट पी सकती हूँ। आई लव यू। लव लव लव यू।

आगे एक महीने के बाद अंजलि ने लिखा है कि विनीत उससे प्यार नहीं करता।

आज की शाम मरी हुई है पर मैं ज़िंदा क्यों हूँ। उस राक्षस ने मुझे सिगरेट में जाने क्या पिलाया। उसने मुझे नोंच खाया। मेरा बदन दर्द से भरा है मगर उससे ज्यादा मुझे अपमान की तकलीफ़ है। वो कहता तो मैं कुछ भी करती मगर... तुम नफ़रत के लायक हो, तुम हर बार बात प्यार से शुरू करते हो और शरीर पर ख़त्म। कितने कमीने हो तुम..।

जनाब इन पंक्तियों के आगे एक पीपल के पत्ते जैसा दिल बना हुआ है और उसके कई टुकड़े हो गए हैं। पन्ने पर बूँद- बूँद टपकता हुआ पानी है, जो शायद आँसुओं का चित्रण है। आगे दो-तीन जगह विनीत लिख कर उसे काट कर वि-नीच कर दिया गया है।

जनाब, इस डायरी में हॉस्टल के बारे में भी लिखा है। 
आज मुझे लगा कि मेरी साँस फूल रही है। मैं दम घुटने जैसा महसूस करने लगी हूँ इसलिए समझ नहीं आया कि क्या करूँ..। इस कमरे में कितनी उदासियाँ हैं और बाहर कितने तन्हा साये डोलते हैं। मैंने सिगरेट पी। मुझे बहुत आराम मिला। पता है कि ये थोड़ी देर ही रहेगा मगर है तो सही। वे कमीनी लड़कियाँ शोर मचाती हैं, तो मचाती रहें। मैं रमा के गले लग कर रोना चाहती हूँ मगर नहीं अब थक गयी हूँ रो-रोकर। हॉस्टल में यही एक सही लड़की है बाकी साली सब की सब मुँह में राम और बगल में कंडोम लिए घूमती है।

आगे कुछ शब्द और उनके अर्थ लिखे गए हैं।

समर्पण- अत्याचार की मौन स्वीकृति, वफ़ा- तू जो चाहे करने की अनुमति, पतिता- जो साथ सोने से इंकार कर दे, वॉर्डन- सरकार की ओर से नियुक्त दलाल। इसके बाद ज़िंदगी लिखकर कई सारे अपमानजनक शब्द लिखे गए हैं।

बीदा रावत का भी इसमें उल्लेख है। 
शाम से बेचैन हूँ। मुझे नहीं पता कि क्यों पर मैं सड़क पर निकल गयी। कहाँ जाना था ये भी नहीं पता। ये भी मालूम नहीं कि मैं हूँ क्यों? आज जब टैक्सी में बैठी तो उसने पूछा कहाँ जाना है? मैं ज़िंदगी से परेशान थी तो कहा ' कहीं भी ले चलो '। वह ऑटो चलाते हुए कुछ देर मौन रहा फिर उसने अपना नाम बीदा रावत बताया और कहा 'बहन परेशान न हो'। वह मुझे अपने घर ले गया, शायद वो उसका घर भी नहीं था। उसकी किसी गिरी हुई दोस्त का रहा होगा। मुझे उस घर में मौजूद औरत ने जूस पिलाया फिर कुछ नया नहीं हुआ।

मीता पुरी ने डायरी के कुछ खास पन्नों को पढ़ना जारी रखा।

जनाब एक पन्ने पर शीर्षक लिखा है “एक हसीन शाम का भाग-दौड़ भरा अंत”

पहाड़ी के छोर पर बैठ कर ढलते हुए सूरज को देखना कितना प्रीतिकर होता है। यह तेज़ चमकता हुआ सूरज जाने कैसे एक सिंदूरी थाली में बदल जाता है। पेड़ों से छनकर जब इसकी किरणें मेरे चेहरे पर गिरती हैं तो मैं उनको हथेली में लेकर देखती हूँ। वे कितनी पवित्र हैं लेकिन ये ढोंगी लोग कहाँ नहीं है। मैं सूरज को देखते हुए सिगरेट पी रही थी कि किसी ने पीछे से आकर मुझे पकड़ लिया। मेरे प्राण सूख गए। उन बलिष्ठ बाँहों के उत्पात से मैं कभी न छूट पाती अगर मैंने दिमाग से काम लेकर उन बाबाजी को पटाया ना होता। वह मूर्ख, मेरे सहमति भरे संकेतात्मक वाक्य सुन कर सहज हो गया था। मैंने उसका नाम पूछा तो उसने बताया मंडलनाथ फिर कहने लगा कि ज़िंदगी में बहुत मज़ा है, जितना चाहो ले लो। वह कुदरत के उपहारों का वर्णन करने में खोया हुआ था तभी मैंने सीढ़ियों से भाग लेने का फ़ैसला किया। उसने मेरा वहशी तरीके से पीछा किया। मैं दौड़कर थक गयी हूँ बहुत ज्यादा.. बहुत ज्यादा। ये बाबा से बचने की दौड़ नहीं है वरन ज़िंदगी के उपहारों से बचने की है।

इस डायरी में बादामी देवी का शुक्रिया अदा किया गया है। 

उसके चोट खाए बदन और नोंची गयी छातियों को देखकर मुझे क्रोध हुआ, अपार दुःख हुआ मगर क्या ये मेरी ज़िंदगी से मिलता जुलता नहीं है? क्या हर औरत की ज़िंदगी से मिलता-जुलता नहीं है? आज उसने मुझे गले लगाया, मुझे अच्छा होने की याद दिलाई। उसने अपने दुःख सुनाये, जो मेरे से मिलते हैं। वो घर में बर्तन माँजती है, झाडू़ लगाती है। उससे मिले पैसे से उसका पति दारू पीकर, उसी को पीटता है और अपमानित करता है। मैं उसके लिए सिगरेट पीने लगी हूँ और अपमानित होने भी। मैं तुम्हारी आभारी हूँ कि तुमने मुझे शादी यानि समझौते के बाद के सीन भी अभी दिखा दिये हैं। यानि मेरा आगे भी क्या होगा..।

आखिरी पन्ना
सोमेन्द्र से मेरा विवाह होने वाला है। वह जाने कैसा इंसान होगा? हालाँकि पढ़ा लिखा तो बहुत है। अभी उसकी पीएच डी भी होने वाली है। मैं क्या सोचूँ उस आदमी के बारे में कि ज़िंदगी अब उतनी अपरिचित नहीं है। कोई ऐसा ख़याल आता ही नहीं जो ख़ुशी से भर दे। रात को सपने आते हैं कि मैं मंडप से गिरकर मर गई हूँ। बादामी कहती है, मरने का सपना अच्छा होता है मगर शादी का नहीं। जाने क्या अच्छा और क्या बुरा होता है।

आज एक किताब पढ़ी, राबर्ट लुई स्टीवेंसन की। उसमें किसी के लिए लिखा है कि उसका एकाकीपन किसी हारी हुई पलटन के एकाकीपन से भी बड़ा था तो क्या ये मेरे बारे में लिखा है?

ज़िंदगी आज मैं तुम्हारा आभार व्यक्त करना चाहती हूँ। सिगरेट के कड़वे और नशे भरे स्वाद लिए, मुहब्बत के होने और खोने के अहसास को समझाने के लिए, सबको अलग सुख और अलग तरीके की तकलीफ़ देने के लिए, भेड़ियों के पंजों से भाग जाने का साहस देने के लिए और मनुष्य को इतनी बुद्धि देने के लिए कि वह शुद्ध और पीड़ारहित ज़हर बना सकने में कामयाब हुआ।

मीता पुरी ने बयान के बाद आज्ञा के लिए प्रश्नवाचक दृष्टि से ऑफिसर को देखा। ऑफिसर ने तेज़ हवा में झुक आई घास की तरह झुके हुए सरों को देखा और फिर ऐसे झुके हुए कई हज़ार और सरों के बारे में सोचा। ऑफिसर ने अपनी जेब पर हाथ रखा लेकिन सिगरेट की डिबिया आज शायद टेबल पर छूट गयी थी।
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[Painting Image : Vinod More]