tag:blogger.com,1999:blog-55458718721391587752024-03-14T17:16:09.101+05:30KISHORE CHOUDHARY[ टूटे बिखरे लम्हों की कहानियां और संस्मरण ]के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-11726575548868375512017-09-01T15:19:00.000+05:302018-01-15T21:04:33.492+05:30 एक जोड़ी पुराने जूते
जब कहीं से लौटना होता है
तब दुःख होता कि यहाँ से क्यों जा रहे हैं.
किन्तु कभी-कभी
लौटते समय दुःख होता है कि आये क्यों थे.
रंग रोगन किये जाने और नया फर्श डाल लेने के बाद भी रेलवे स्टेशन में बदला हुआ कुछ नहीं दिख रहा था. वे दोनों आधा घंटा से इंतज़ार कर रहे थे. जिस ट्रेक पर गाड़ी आनी थी. वह खाली पड़ा हुआ था. दूसरे प्लेटफार्म पर लोकल लगी हुई थी. लोकल में बैठी सवारियों में कोई हलचल नहीं थी.के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-33438162967806728242016-04-19T09:34:00.002+05:302016-04-19T09:34:33.024+05:30सुरिन तुम्हें याद है, वहां एक नन्हा गुलमोहर था.
[जब इस कहानी को पढना शुरू करें तब घर से बाहर निकल आयें. सूनी सड़क से होते हुए
धूप का लिबास ओढ़े एक कैफ़े में घुस जाएँ. वहीँ बैठें और चुप कहानी को देखते रहें.]
तुम कब से बैठी हो?
चालीस मिनट से.
सब मेज खाली पड़ी हुई थीं.
बिना खिड़की वाली इकलौती साबुत दीवार के बीच टंगे टीवी पर क्रिकेट मैच का प्रसारण दिख
रहा था. उसे देखने वाला कोई नहीं था. दुनिया के किसी कोने में खिलाड़ी अपने के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-22165235010508524632015-06-04T20:36:00.004+05:302015-08-11T08:55:34.594+05:30एक घटिया सोच वाले आदमी की सलाह
लड़की ने अपने पिता के बारे में सोचा और इस सोचने को तुरंत ख़ारिज किया कि देखेंगे.
लड़का हथियारों के सौदागर देश में मामूली तरह का नौकर था. एक कमरे में दो और लड़कों के साथ रह रहा था. उसके दिन सिर्फ इसी आस में गुज़रते थे कि कलेंडर में पंद्रह दिन आगे के किसी दिन पर एक जामुनी घेरा था. उसके आगे एक नीला और एक लाल दिन प्रिंटेड था.
सुबह दूध का बचा हुआ प्याला रखा था. एक ब्रेड थी. जिस पर जबरन क्रीम के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-7094198626035019682015-05-26T19:21:00.002+05:302015-05-28T08:39:20.214+05:30गुलजान, देखो परिंदे!
हवेली के बंद दरवाज़े से चर्र की आवाज़ आई। बरसों से बंदी होने से दरवाज़ों के कब्ज़े ये भूल गए थे कि उनका काम बंदी होकर बैठे रहना नहीं वरन् खुलना और बंद होना आसान करना है। दरवाज़े से पहले हल्की रोशनी की पतली फाँक झाँकी और उसके बाद एक कमसिन चेहरा दिखाई दिया। दो मासूम आँखें। बायाँ कंधा आहिस्ता से चौखट और दरवाज़े के पल्ले को छुए बिना तिरछा होकर बाहर की ओर आ गया। इसी बाहर आने के दौरान आँखों ने पहले क़रीब के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-26632695213050761262014-09-23T11:28:00.000+05:302015-05-26T18:43:17.606+05:30परदे के पार चिड़िया
वह अभी जागी थी. पिछली रात उसने दस घंटे किसी क्षोभ और दुःख के बिना व्यतीत किये थे. उसको क्या चिंता सता रही थी, ये कहना इसलिए कठिन था कि वह अपनी असल परेशानी कभी खुद तय नहीं कर पाई.
वह सब कुछ हार चुकी होती तो कितना अच्छा होता कि उदास चुप बैठी रहती. ज़िंदगी को ही हारा हुआ मान कर कहीं जाकर मर जाती. मगर वह हारी नहीं थी. वह अपने आप को हारता हुआ देख रही थी. चुप बैठे खुद को हारते हुए देखना, ये जीवनके सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-81410721986982291382011-05-04T16:36:00.024+05:302014-08-17T11:22:39.010+05:30प्रेम से बढ़ कर...
इन दिनों उसे जो भी मिलता, प्रेम के बारे में बड़े गंभीर प्रश्न करता. जबकि वह कहीं दूर भाग जाने की अविश्वसनीय कार्ययोजना के बारे में सोच रहा होता. उसकी कल्पना की धुंध में गुलदानों से सजी खिड़कियाँ, समंदर के नम किनारे, कहवा की गंध से भरी दोपहरें और पश्चिम के तंग लिबास में बलखाती हुई खवातीनें नहीं होती. एकांत का कोना होता, जिसमें कच्ची फेनी की गंध पसरी रहती. उस जगह न तो बिछाने के लिए देह गंधके सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com48tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-23141994162948068162011-04-22T13:58:00.010+05:302015-09-12T13:09:16.965+05:30मार्च महीने की एक सुबह में प्रेम
ये चिपचिपी गरमी वाला मौसम था। रात के दो बज रहे थे। तेरहवें माले के फ्लेट की खिड़की के पास का मौसम कुछ ठीक जान पड़ता था। लेकिन वहाँ भी हवा जैसा कुछ न था। अंदर आने वाले दरवाज़े के पास जूते रखने की छोटी रैक थी। वहाँ रुकने का मन नहीं होता था। इसलिए जूते हमेशा बालकनी कहे जानी वाली छोटी सी जगह पर एक दूजे पर अलसाए हुये पड़े रहते थे। फ्लेट था, जैसे रेलवे यार्ड में खड़ा हुआ शिपिंग कंटेनर। एक तरफ दरवाज़ा और के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-89445094503081914122010-09-12T23:31:00.016+05:302014-08-17T11:29:36.891+05:30इक फासले के दरम्यान खिले हुए चमेली के फूल
रसोई की खिड़की से उन पर हल्की सफ़ेद रौशनी पड़ रही थी। वे चमेली की बेल पर लगे हुए फूल थे। दूधिया जुगनुओं की तहर चमकते हुए। बेल जो झाड़ी जैसी हो गई थी। रात की स्याही में ज़रा उचक कर गौर से देखो तो लगता था कि उसने एक घात लगाये हुए वन बिलाव की शक्ल ले ली है। वे अनगिनत फूल थे। दीवार के सहारे चमकते हुए और नीचे कहीं धुंधले से दिखते हुए। नैना की ज़िन्दगी की तरह बिना करीने के खिले हुए। जहाँ मरजी हुईके सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com39tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-23128808045888907142010-04-11T19:56:00.006+05:302014-08-17T11:38:17.562+05:30अंजलि, तुम्हारी डायरी से बयान मेल नहीं खाते हैं
निस्तब्ध कोठरी के कोनों से निकलकर अँधेरा बीच आँगन में पसरा हुआ था। दीवारों से सटी चुप्पी से अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल था कि यहाँ पाँच लोग बैठे हैं। उन सब लोगों में एक ही साम्य था कि वे सभी एक लड़की को जानते थे या उसकी ज़िंदगी को कहीं से छू गए थे। चमकदार सड़क से होता हुआ गठीले बदन वाला ऑफिसर मद्धम प्रकाश वाली इस बड़ी कोठरी में दाखिल हुआ। दुनिया देख कर घिस चुकी उसकी आँखें छाया प्रकाश की के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com60tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-84929466213762365702009-12-11T23:40:00.023+05:302014-08-17T11:48:09.507+05:30दोस्तों ब्लॉग छोड़ कर मत जाओ, कौन लिखेगा वक्त ऐसा क्यों है ?
टूटने बिखरने के ब्योरे दर्ज कर पाना मेरे लिए सदा दुष्कर कार्य रहा है, मेरी प्रतिभा एक सामान्य बालक, युवा और फिर अधेड़ होने की ओर अग्रसर आम आदमी जैसी ही है. मेरी ज्ञानेन्द्रियाँ भी मुझे विशिष्ट नहीं बनाती है छठवे, सातवे और उससे आगे के सेन्स मुझ तक अभी पहुंचे नहीं हैं. पंद्रह बीस दिन पहले एक सपना देखा।
मैं अपने कुछ मित्रों के साथ किसी आर्मी एरिया के पास जंगल में किसी की हत्या करने का के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com46tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-15475270651429482482009-03-23T08:30:00.010+05:302014-08-17T11:58:15.111+05:30कामान्ध राजा और रेगिस्तान की छिपकली
सखी, तुम्हारी कौमार्य अवस्था के कारण इस कथा को सुनते समय मन में श्लील-अश्लील के राग उत्पन्न हो सकते हैं किंतु ये महज मनोवेग हैं और परिस्थितियों के अनुरूप बदलते रहते हैं। आज ग्यारहवीं सदी के इक्कीसवे वर्ष के मध्याह्न माह के पुष्य नक्षत्र के अमृत सिद्धी योग में सुनाई जा रही इस कथा में बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के कुछ आवश्यक उद्धरण भी सम्मिलित हैं वे मैंने अपनी दिव्य दृष्टि से जाने हैं। रति रूपणि के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com32tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-71313952097386995612009-01-09T11:23:00.002+05:302010-03-15T21:10:30.053+05:30तन्हा तन्हा मत सोचा कर... "पेशानी-ऐ-हयात में कुछ ऐसे बल पड़े, हंसने को जी जो चाहा तो आंसू निकल पड़े, रहने दो ना बुझाओ मेरे आशियाँ की आग, इस कशमकश में आपका दामन ना जल पड़े।" इन्ही शेर के साथ ग़ज़ल आरम्भ होती और सलीम के चेहरे पर मोनालीसा मुस्कान उतर आती मैं उसके चहरे पर कई भाव देखता किंतु होस्टल से निकल कर नए शहर में आए एक बीवीविहीन इंसान के लिए ऑफिस जाने के लिए खाना गैरजरूरी चीज़ नहीं हो सकता तो संगीत की रूमानियत को थोड़ा परे के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-5545871872139158775.post-6219204148222120202008-11-02T22:24:00.009+05:302014-08-16T11:16:50.716+05:30मेरे बारे में
साल सत्तर में जन्मा. कला में स्नातक और बाद में पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर की उपाधि का जुगाड़ किया हुआ है. बाईस की उम्र तक जोधपुर, जयपुर और दिल्ली जैसे शहरों में घूमा. हबीब तनवीर और सफ़दर हाशमी के नाटक देखे. बेहतर दुनिया की लड़ाई के आन्दोलनों में भाग लिया. जयपुर के फुटपाथों पर चाय पीते हुए दोस्तों से कविताएं सुनी. एक अदद मुहब्बत के लिए जोधपुर में बसेरा किया. यहीं अख़बारों के के सी http://www.blogger.com/profile/03260599983924146461noreply@blogger.com