लड़की ने अपने पिता के बारे में सोचा और इस सोचने को तुरंत ख़ारिज किया कि देखेंगे.
लड़का हथियारों के सौदागर देश में मामूली तरह का नौकर था. एक कमरे में दो और लड़कों के साथ रह रहा था. उसके दिन सिर्फ इसी आस में गुज़रते थे कि कलेंडर में पंद्रह दिन आगे के किसी दिन पर एक जामुनी घेरा था. उसके आगे एक नीला और एक लाल दिन प्रिंटेड था.
सुबह दूध का बचा हुआ प्याला रखा था. एक ब्रेड थी. जिस पर जबरन क्रीम की परत चढ़ाई हुई थी. उसे मालूम था कि क्रीम लगी ब्रेड को दूध के साथ खाना मुश्किल है. वह कभी भी उलटी कर सकता था. इतनी चिकनाई कि खाने की याद में सिर्फ यही बचा था. पांच सौ रुपये का एक परांठा खाए हुए सप्ताह भर हो चुका था. लड़के ने अपने दोस्तों के साथ कई बार प्लान किया कि वे इस बेचलर रूम में गैस का उपयोग हिटिंग के सिवा कुछ पकाने के लिए करने की जुगत लगायेंगे. लेकिन खाकी पेंट और आसमानी नीले रंग का कमीज पहने हुए उनकी सुबहें, शाम से होती हुई रात में ढल जाती थी.
जब वो जामुनी घेरे वाला दिन आता उस दिन वह लड़की को फोन करता था.
लड़की को वकीलों से नफ़रत थी और वह वकीलों वाली पढ़ाई कर रही थी. उसे कोई सात साल हो गए थे. वह लगातार पहले दर्ज़े में पास होती और इसी वजह से उसकी पढ़ाई की लकीर खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी. वह किसी खानदानी वकील के घर रात तीन बजे किसी पीये हुए आदमी की जिंदा लाश के साथ सोकर सुबह आठ बजे एक कार में सवार होकर क्रमशः बुजुर्ग, वरिष्ठ और कनिष्ठ वकीलों के साथ कोर्ट जाने का सोच रही होती. उसे यही सोच कर पसीना आता और वह अपने एलएलएम से आगे के किसी और कोर्स के बारे में सोचने लगती.
ये दो ज़िंदगियाँ इस कदर घिरी थीं और एक ही ख्वाब देखती थी, मुक्ति. बंधन टूट कर बिखर रहे हैं. जैसे जंग लगे लोहे पर ज़रा सी आंच लगते ही पपड़ियाँ गिरती हैं. परिवार जैसी संस्था के आदिम तरीकों को कोसते हुए लड़का व्यंग्य से पूर्ण हास करता था. लड़की उसका समर्थन करती थी. लड़की को दिखाई देता कि रात ढल चुकी है. नौकर काम करके जा चुके हैं. माँ एक खिड़की के पास बिस्तर पर लेटी हुई सोने का स्वांग कर रही है. पिताजी ऊपर के कमरे में नीम अँधेरे में कुछ फाइलों के बीच बैठे हुए. सौ में नब्बे बार वे वहीं सो जाते थे. माँ और पिताजी के बीच पिछले कई सालों से यही सम्बन्ध था.
दो जोंकें थी. एक दूसरे की पीठ पर अपने दांत गडाए. उन दांतों से पीठ सहलाई नहीं जा सकती थी. सिर्फ खरोंचें बनायीं जा सकती थी. पीठें इन खरोंचों की अभ्यस्त थीं.
लड़का आईआईटी पढ़कर जिस ख़ुशी में था उसी एवज में ज़िन्दगी पर लतीफे बनाया करता था. वे लतीफे हथियारों के सौदागर देश में रहने वाले एशियाई लोगों के बारे में जायदा होते थे. इस ज्यादा में से जो बच जाता था वह उघड़े नितम्बों वाली देसी औरतों के बारे में होता था. वे औरतें भी एशियाई कही जा सकती थी किन्तु लड़के को लगता था औरतों का कोई देश कोई महाद्वीप नहीं होता. इसलिए उसे बचे हुए लतीफे सिर्फ औरत कहते हुए गढ़ने होते थे.
एक रोज़ बेहद उदास हाल में लड़की ने कहा- इस बार की परीक्षाओं तक सिर्फ पंद्रह दिन मेरे हाथ में हैं. इसके बाद मैं कुछ न कर सकूंगी. तुम मेरे साथ रहना चाहते हो तो पंद्रह दिन के बाद की तारीख पर एक जामुनी घेरा बनाओ.
लड़के ने देखा कि उसके कपडे सुखाने के हीटर पर टंगे उसके अंडरवीयर में सीलन भरी थी. वहा गरम था मगर भीगने का असर पूरा बचा हुआ था. बाहर बर्फ थी. पहली गाड़ी के छूटने में सिर्फ चालीस मिनट बचे थे. उसने जींस पहनी और पोखरों में नहाने की बचपन की आदत को सराहा और अंडरवीयर को दुनिया की सबसे गैर ज़रूरी चीज़ बताने वाला लतीफा बनाया और कमरे से बाहर निकल गया.
लड़की ने पहला परचा दिया तब तक दोबारा लड़के से बात न हुई. शामें बेहद उदास और स्याह थी. लड़की को लगा कि कविता करके इस बुरे हाल को चुनौती दी जा सकती है. लड़की ने पिछले नौ साल से कोई कविता नहीं पढ़ी थी. उसे कुछ एक लोगों के नाम याद थे जिनको कविता के लिए जाना जाता था. लड़की ने खुद को यकीन दिलाया कि कविता करने के लिए एक उदास गहरी शाम की ज़रूरत होती है न कि कविता पढने की. उसने अपने दिल का हाल लिखकर डायरी को बंद कर दिया.
सुबह तीन बजे लड़के का फोन आया. कविता सुनकर लड़के ने उसे एक लतीफा सुनाया जो किसी कविता के बारे में था.
सुनो, मैं बेहद घबरा रही हूँ.
लड़के ने कहा- कोई घबराने की बात नहीं है. मैं पहले अपने घर में बात करूँगा और उसके बाद तुम्हारे घर पर.
लड़की ने सोचा कि लड़का उसके पापा से बात कर रहा है. ये सोचते हुए उसे पसीना आ गया.
तभी उधर से लड़के की आवाज़ आई- हेलो, कहाँ हो? क्या मेरी आवाज़ सुन पा रही हो?
हाँ
ढें टेन तें... आई एम कमिंग
लड़की ख़ुशी से भर कर बिस्तर पर गिर गयी.
लड़के ने पूछा क्या हुआ?
लड़की ने कहा- मैं ख़ुशी से बिस्तर पर गिर गयी हूँ.
लड़के ने आवाज़ को किसी पौराणिक कथा के पात्र सा बनाकर कहा- ब्रह्म मुहूर्त में सोने वाले गधे होते हैं. जागती रहो... मैं आ रहा हूँ.
दिल्ली के पालम हवाई अड्डे पर हथियारों के सौदागर देश में काम करने वाला लड़का उतरने वाला था उसके पहले दिन लड़की ने अपनी सहेली को फोन किया. “सुनो वह आ रहा है, मैं क्या करूँ?”
सहेली ने कहा सुन फोन चालू रख मैं मेरे वाले को कोंफ्रेंस पर लेती हूँ. तुम म्यूट हो जाना.
सहेली वाले ने जब फोन उठाया. फोन के उस पार आवाज़ आ रही थी. झूमती चली हवा कि याद आ गया कोई... मुकेश की आवाज़ रात को रात होने की सजा दे रही थी. सहेली ने कहा कुछ बोलो भी. उधर से आवाज़ आई कोई बोले तो.
सुनो मेरी एक सहेली है. वह जिससे प्यार कर रही है वो कल आ रहा है. उसे क्या करना चाहिए?
सामने वाले कहा- उसे प्यार करना चाहिए.
सहेली ने कहा- दोनों शादी करना चाहते हैं.
सामनेवाले ने कहा- कोई एक बात कहो. प्यार करते हैं या शादी करना चाहते हैं
सहेली ने कहा- मजाक न बनाओ यार वह और मैं दोनों सीरियस हैं.
सामने वाले ने कहा- उसको कहो कि आने वाले को बाँहों में भरना. खूब चूमना. मकान मालिक से नहीं डरना और उसे घर ले आना. और रात भर में उसे पढ़ लेना. साथ सोयेंगे तो अच्छा लगेगा दोनों को...
इसी बीच फोन पर तीसरी आवाज़ आई- छी... इस छी के आगे सुबकने की आवाज़ के कुछ टुकड़े थे.
लड़की ने किसी ग्लानि में म्यूट रहने का वादा तोड़ते हुए दुखी मन से फोन पटक दिया. उसकी सहेली ने फोन किया. उसने फोन नहीं उठाया. दोबारा फोन किया तो उसने उठा लिया.
क्या हुआ मेरी जान
वह एक घटिया आदमी है. मेरी बात मानों तो तुम उसे छोड़ दो.
अरे ऐसी बात नहीं है. वह बस ऐसा ही है
तुम ऐसा क्यों नहीं कहती कि वह एक घटिया सोच वाला आदमी है.
दोनों सहेलियों ने इसके बाद खूब बातें की. रात गहरी होती गयी. इधर लड़की को इसलिए नींद न आ रही थी कि कल वह आने वाला था और सहेली इसलिए फोन पर थी कि एक प्यारी सहेली को हुए दुःख का अपराधबोध थोड़ा हल्का हो जाये.
इस बीच वक़्त की पैमाइश के नियमों के अनुसार पच्चीस-तीस महीने बीत गए थे. लड़की की सहेली ने अपने वाले को फोन पर कहा कि आज शाम वह लेडीज संगीत में जा रही है. उसके वाले ने पूछा- किसके यहाँ ख़ुशी आने को है? सहेली के मुंह से निकला अरे वही...
सहेली वाला सोचते हुए बोला- बड़ा वक़्त लगा. सचमुच प्यार की राह बड़ी कठिन है. सहेली ने कहा- नहीं! उसकी शादी तो वह जब आया था, उसके तीन महीने बाद ही किसी से हो गयी थी. मेरी सहेली की परसों है.
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[Painting : Mimi Torchia Boothby]